विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रति वर्ष लगभग दस लाख लोग आत्महत्या से मरते हैं एवं इससे भी ज्यादा, तकरीबन 20 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रति एक लाख लोगों पर आत्महत्या करने वालों की औसत उम्र 15-29 वर्ष दर्ज की गई हैं। आंकड़ें ये भी बताते हैं कि भारत में वर्ष 2022 में लगभग 13,500 से ज्यादा स्टूडेंट्स ने खुदकशी किया हैं जो कि आत्महत्या से होने वाली मृत्यु में 7.7% विद्यार्थी थे।
विवेचना – साल 2009 में “थ्री इडियट्स” नाम की एक मूवी आयी थी, जिसके माध्यम से अभिभावकों को ये सन्देश दिया गया था कि वो अपने बच्चों पर अपने विचार न थोपे और बच्चें के स्वयं की आकांक्षा के अनुरूप उसका कैरियर चुनने की आज़ादी दे । इस मूवी के आने के बाद बहुत से पैरेंट्स ने अपने बच्चों को उनका खुद का कैरियर चुनने की आज़ादी तो दिया, किन्तु आगे चल कर धीरे-धीरे ये प्रवित्ति क्षीण होती गयी और अभिभावकों ने फिर से अपने बच्चो पर इंजीनियरिंग, मेडिकल और भी इत्यादि प्रोफेशनल क्षेत्रों में कैरियर बनाने का दबाव बनाना प्रारम्भ कर दिया, जो कि उन बच्चों के खुद के द्वारा कैरियर चुनने के सपनों पर आघात साबित हुआ हैं। जिसकी आवृत्ति में स्टूडेंट्स द्वारा क्रियान्वित रोज नई-नई अप्रत्याशित घटनाएं सुनने और देखने को मिल रही हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों (एनसीआरबी) के आंकड़ों से ये साफ़ पता चलता हैं कि कोविड की भयावहता के बीच छात्रों में आत्महत्या की दर में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई थी, जिसमे साल दर साल बढ़ोत्तरी होती जा रहीं हैं।एनसीआरबी रिपोर्ट कहती हैं कि वर्ष 2021 में हर रोज तकरीबन 35-36 बच्चों ने आत्महत्या की हैं, जो कि वर्ष 2022 में हुई 12,526 मौतों से 4.5% की बढ़ोत्तरी हैं।

☞ आत्महत्या के नवीनतम कारण –
➢ एनसीआरबी की एडीएसआई रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 10,732 आत्महत्यायों में से “परीक्षा में विफलता” के कारण 864 आत्महत्याएं हुई थी।ये बेहद चौकाने वाला तथ्य हैं कि वर्ष 1995 के बाद, 2021 में हमने सबसे ज्यादा छात्रों को सदैव के लिए खो दिया हैं।साल 2017 के पश्चात् आत्महत्या के मामलों में तकरीबन 32.15% की बढ़ोत्तरी हुई है, जिसमे लगभग 9,905 स्टूडेंट्स ने आत्महत्या किया हैं।
➢ शिक्षा मंत्रालय के अनुसार , वर्ष 2014-21 में एनआईटी, आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के लगभग 122 विद्यार्थियों की आत्महत्या से मौत हो गई।
➢ कोटा, जो कि वर्तमान में स्टूडेंट्स के सुसाइड का हब बना हुआ हैं, वहाँ 2022 से लेकर 2023 तक, अब तक 22 छात्रों ने आत्महत्या की हैं, एवं वर्ष 2011 के उपरांत तकरीबन 122 छात्रों की असमय मौत हो चुकी हैं, जो कि चिंता का विषय हैं। कोटा, मेडिकल एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अभूतपूर्व कोचिंग्स के लिए पुरे देश में विख्यात हैं। कोटा में प्रति वर्ष डेढ़ से दो लाख छात्र स्टडी करने के लिए आते हैं। किन्तु पिछले कुछ सालों से कोटा, कोचिंग हब से ज्यादा छात्रों के ख़ुदकुशी हब में परिवर्तित होता जा रहा हैं। दिन ब दिन स्टूडेंट्स द्वारा की जा रही आत्महत्यायों ने सरकार एवं अभिभावक, दोनों को पशोपश में डाल दिया हैं। कामयाबी के सपने देखने वाले ये छात्र तनाव के बोझ तले दबकर ये कदम उठा लेते हैं. तनाव पढ़ाई का, तनाव पैरेंट्स का, तनाव कुछ बनने का, तनाव कोचिंग संस्थान का…तनाव असफल होने का. अधिकतर मामलों में यही चीजें सामने निकलकर आती हैं. ऐसा नहीं है कि कोटा में बच्चे सफल नहीं होते हैं.

कोटा कोचिंग संस्थानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी -
कोटा कोचिंग संस्थानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम् टिप्पणी की है – ‘ कोटा में हो रही आत्महत्यायों के लिए पूर्ण रूप से संस्थानों को दोषी ठहरना उचित नहीं हैं, क्योकिं माता-पिता की बढ़ती उम्मीदें बच्चों को विवश कर रहीं हैं जीवनलीला समाप्त करने के लिए।
'ख़राब परवरिश -
मनोवैज्ञानिकों और मानसिक चिकित्सकों का कहना हैं कि वर्तमान जीवन-पद्धति भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं बच्चों को मानसिक रूप से निराशा कि तरफ धकेलने के लिए। क्योकि आजकल के पैरेंट्स बहुत कम ही अपनी जॉब से फुर्सत निकाल कर अपने बच्चों को समय दे पा रहे हैं, इससे बच्चों में एकाकीपन बढ़ता जा रहा हैं, जो उनके आत्मविश्वास के लिए घातक सिद्ध हो रहा हैं। ऊपर से बहुत से माता-पिता अपने बच्चों के सामने ही लड़ने-झगड़ने लगते हैं हैं जो कि सर्वथा गलत हैं। इससे बच्चे में हीनभावना अग्रसर होती हैं और वो चीज़ों के प्रति उदासीन होता जाता हैं।
सोशल मीडिया का कुप्रभाव -
बहुत सी आत्महत्याएं ऐसे वक़्त पर दर्ज़ हुई जब आस-पास कोई त्यौहार या आयोजन रहा हो। मानसिक विशेषज्ञों का मत हैं कि ख़राब परवरिश इसकी बहुत बड़ी वजहों में से एक हैं, क्यों कि हर पेटेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चों को बचपन से ही परिस्थितियों से जूझना सिखाये। अत्यधिक सोशल मीडिया से जुड़े रहना भी एक मानसिक अवसाद का कारण बनता जा रहा हैं, अतः माता-पिता को चाहिए कि बच्चों कि परवरिश का ख़ास ख्याल रखे, एवं उसे हर प्रकार कि स्थिति से जूझना सिखाये।
महत्वपूर्ण सूचना :
अगर आपको या आपके किसी परिचित/संबंधी के मन में ख़ुदकुशी का खयाल आता हैं तो ये एक गंभीर मेडिकल एमरजेंसी है. अतः तुरंत आप भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 पर संपर्क करें. यहां पर आपकी पहचान पूर्ण रूप से गोपनीय रखी जाएगी एवं विशेषज्ञों के द्वारा आपको परामर्श दिया जायेगा इस स्थिति से उबरने के लिए।